rohit_420
My Real Life
छुअन
वो छुअन तुम्हारी मेरे ज़िस्म पर,
ना जाने क्यों आज एक वहशियत लगती हैं.....
हूँ मैं नादाँ बहुत पर इतना समझती हूँ,
क्यों ना तुम मुझे नासमझ समझते हो......
जब छूते हो तुम मुझे, ना जाने क्यों,
खुद पर शर्म आती हैं.....
तुम मेरे भाई हो, मेरे पिता हो या मेरे बहुत करीबी हो,
ना कह पाती हूँ मैं तुमसे, तो तुम क्यों फायदा नाजायज उठाते हो......
कभी सोची हूँ मैं, क्यों मैं लड़की बन पैदा हुई,
पर खुद पर गर्व करती हूँ, मैं लड़की हूँ,
जो तुम्हे जन्म देती है, तुम्हे अपनी कोख में पालती हूँ,
पर क्यों तुम मुझे छूते हो,
कभी मेरे कमर में, कभी मेरे स्तनों में,
महसूस करती हूँ मैं हवस उस छुअन में,
क्यों तुम मुझे छूते हो,
अकेले में, उस भीड़ में, उन हैवानो के साथ.....
क्यों उन निगाहों से टटोलते हो मेरे ज़िस्म को,
क्यों मेरे बदन को नंगा कर देते हो,
अपनी वहशियत से.......
कैसा लगे अगर तुम्हे कोई छुए,
गलत मकसद से.......
क्या सोच पाओगे तुम, उस छुअन को,
तो मैं क्यों सहूँ, उस छुअन को......
जो तुम मेरे ज़िस्म को हर पल छू लेते हो.......
आज ये सवाल हर वो लड़की पूछ रही है, जो खुद को असुरक्षित महसूस करती है, इस समाज से, इस ज़माने से, जो उसकी और हर कदम पर, हर पल एक वहशियत भरी नज़र से देख रहा हैं.....
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