rohit_420

My Real Life
2022-11-19 08:13:25 (UTC)

डर है समाज से

मुझे डर है इस समाज से,
क्योंकि मैं एक लड़की हूँ......!

पहला डर मेरे घर से हैं,
कलंकित करते है जो रिश्तों को,
किसी की बहन हूँ, किसी की बेटी हूँ,
ना जाने क्यों फिर भी, अपने घर पर ही,
मुझे डर लगता हैं,
कौन अपना समझता है,
कौन पराया लगता हैं........
मुझे डर है इस समाज से,
क्योंकि मैं एक लड़की हूँ......!

फिर शुरू हुआ मेरा डऱ,
आस-पास के माहौल से,
ना जाने क्यों,
उन पान की गुमटियों से,
उन चाय की दुकानों से,
वो वहशियत भरी निगाहें,
करती हैं मेरा बलात्कार सरेआम,
किससे बचाऊं मैं खुद को,
किसको अपना दर्द बताऊँ,
मुझे डर है इस समाज से,
क्योंकि मैं एक लड़की हूँ......!

मेरे डर को और बढ़ा दिया,
मेरे स्कूल, कॉलेज, और कार्यलय ने,
जहाँ हर नज़र मेरे सीने को चीरती हैं,
जहां हर जुबां से टपकती है लार मेरे ज़िस्म के लिए,
कैसे बचाऊं मैं खुद को,
ना जाने कब ख़त्म होगा ये डर,
कब मैं जी पाऊंगी खुल कर बिना डरे,
मुझे डर है इस समाज से,
क्योंकि मैं एक लड़की हूँ......!

कुछ और समझदार हुई मैं,
कर दी माँ-पिता ने मेरी शादी,
चलो अब डर नहीं है किसी का,
कोई तो है जो अब साथ निभाएगा मेरा,
पर पहली रात थी, माना वो सुहागरात थी,
किया उसने मुझे प्यार जी भर कर,
पर अब ये हर रात की बात थी,
ना मेरी हामी थी,
ना मेरी रज़ामंदी थी,
फिर भी हर रात वो,
मेरे ज़िस्म को नोंचता रहा,
मेरी रूह को वो ना जाने क्यों,
वो लूटता रहा,
हां डरती हूँ मैं आज भी,
क्योंकि मैं एक लड़की हूँ......!

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