rohit_420

My Real Life
2022-11-19 07:45:29 (UTC)

कविता 13

मैं चीखती रही, तुम मुझे दबाते रहे,
मैं सहती रही, तुम मुझे दर्द देते रहे,
मेरे जज़्बातों से खेलते रहे,
मुझे अपनी जागीर समझ कर,
तुमने मेरा फायदा लिया,
मुझे समझ कर खिलौना तुम,
मेरे दिल से खेलते रहे,
मैंने तुमसे कुछ न कहा,
तुमने मुझसे कुछ ना सुना,
मेरे ज़िस्म में दिखने वाले निशाँ,
तुम्हारी मर्दानगी दिखाते रहे,
मेरे नंगे बदन को निहार कर तुम,
मुझे अपना शिकार बनाते रहे,
ना रात का साया, ना दिन की परवाह,
मैंने बस तुम्हारा साथ दिया,
मैंने हर दर्द सहा, बस तुमको वो सुख दिया,
आज मेरे दिल के दर्द को तुमने ना समझा,
निकाल फेंका अपनी ज़िन्दगी से,
जैसे कोई तिनका,
क्यों किया तुमने,
क्या पाया तुमने,
मुझे बर्बाद कर के,
ना समझ सकी उस मंगलसूत्र के बंधन को,
जो तुमने एक दिन तोड़ दिया,
बीच मझधार में तुमने मुझे अकेला क्यों छोड़ दिया,
दिल भर गया तुम्हारा, या मेरे प्यार में कोई कमी थी,
कोख पाली तुम्हारे बीज की, ना उसका मैंने हिसाब किया,
तुमने जो कहा वो किया,
ज़हर तुम्हारे नफरत का प्यार का जाम समझ पिया,
अब तुम ही बताओ क्या गुनाह हैं मेरा,
क्यों मैं इतने इम्तेहान के बाद भी तुम्हारी ना हो सकी....!

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