Truthful

Finding my flow
2020-09-16 11:27:14 (UTC)

ek adhoori kavita

अब मैं जो हूँ, वो मैं हूँ !
लेकिन मैं वो नहीं हूँ, जो तुम मुझे समझते हो !
क्या तुम मुझे समझने की कोशिश भी करते हो ?
क्या तुम मुझे ऐसे ही क़बूल नहीं कर सकते हो ?
तुम मुझे क्यों बदलना चाहते हो ?
तुम मुझे क्यों काबू में रखना चाहते हो ?
तुम मुझ पर बेबुनियाद इलज़ाम लगाते हो ?
क्या तुम बस जीतने का एहसास चाहते हो ?

मैं समझ नहीं पाता हूँ कि मेरे हारने से तुम जीत कैसे जाओगे ?
मुझे नहीं लगता कि तुम कभी अपनी करनी पर पछताओगे...

अपने 'महान' होने का झूठ कब तक और कितना फैलाओगे ?
अपनी हाथों बुने 'बर्बादी' के जाल में फँसते ही चले जाओगे ?

मुझे तुम्हारी 'फ़िक्र' हुआ करती थी कभी लेकिन अब पहले अपनी होती है...
तुम्हारे साथ रहने में, तुम्हारा ख़याल करने में मेरी सुख़-शान्ति भंग होती है...
मुझे आज़ादी चाहिए - तुम्हारे खयालों से, तुम्हारे सवालों से !
मुझे छुटकारा चाहिए अब तुम से जुड़े हर तरह के बवालों से !
मैं कमज़ोर था, मैंने ग़लती की है, मैं सजा पाने को भी तैयार हूँ !
जो भी बची है 'ज़िंदगी' उसे अपने तरीक़े से जीने का तलबग़ार हूँ !




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