Truthful
Finding my flow
poetry
'क्या चाहती हो ?'
मैंने कहा - प्यार, इज़्ज़त, कदर !
मेरा देना साथ, जैसा भी हो सफर !
थोड़ा हक़, थोड़ी ज़िम्मेदारी, थोड़ा ख्याल !
तुमने बार-बार दोहराया वही एक सवाल !
तुम पूछते रहे, मैं बताती रही !
नए-नए अंदाज़ से जताती रही !
लेकिन तुम समझे ही नहीं या फिर
तुमने कोशिश नहीं की समझने की !
हर जुगत लगायी, कोई कसर न छोड़ी
मैंने भी टूटे रिश्ते की दरार को भरने की !
चलो...
जो फैसला हुआ है अब, उसे कर लो मंज़ूर !
मेरी इस आखिरी गुज़ारिश मान लेना ज़रूर !
नहीं तो याद रखना, तुम ही पछताओगे !
मुझे भला-बुरा कह कर कुछ न पाओगे !
मैंने तुम्हारे साथ-साथ खुद को भी परखा है !
वक़्त और तजुर्बे के साथ खुद को बदला है !
तुम नहीं बदले, यह तुम्हारी ही कमज़ोरी है !
औरों को इलज़ाम देना, तुम्हारी मजबूरी है !
अच्छा...
अगर अब एक बार और पुछा तुमने मुझसे,
'क्या चाहती हो ?'
मैं कहूँगी - 'आज़ादी'
इसका मतलब तो समझते हो न तुम ???
काश !
न मैंने ख़्वाब देखा होता,
न उस ख़्वाब की ऐसी होती ताबीर !!
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