Truthful

Finding my flow
2019-12-03 22:00:19 (UTC)

poetry

'क्या चाहती हो ?'
मैंने कहा - प्यार, इज़्ज़त, ख्याल !
तुमने फिर दोहराया अपना सवाल !

तुम पूछते रहे, मैं बताती रही !
नए-नए अंदाज़ से जताती रही !

लेकिन तुम समझे ही नहीं या फिर
तुमने कोशिश नहीं की समझने की !

हर जुगत लगायी, कोई कसर न छोड़ी
मैंने टूटे रिश्ते की दरार को भरने की !

चलो, अब जो भी है - उसे कर लो मंज़ूर !
मेरी आखिरी गुज़ारिश मान लेना ज़रूर !

नहीं तो याद रखना, तुम ही पछताओगे !
मुझे भला-बुरा कह कर कुछ न पाओगे !

मैंने तुम्हारे साथ-साथ खुद को भी परखा है !
मैंने तो खुद को वक़्त और तजुर्बे से बदला है !

तुम नहीं बदले, यह तुम्हारी ही कमज़ोरी है !
औरों को इलज़ाम देना, तुम्हारी मजबूरी है !

अगर अब एक बार और पुछा तुमने मुझसे,
'क्या चाहती हो ?'
मैं कहूँगी - 'आज़ादी'
अब इसका मतलब तो समझते हो न तुम !




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