rohit_420

My Real Life
2017-09-25 21:55:18 (UTC)

हवस

उस रात की दास्ताँ हैं,<br>
हां ये उस रात की दास्ताँ हैं,<br>
जब तुमने मुझे अपनी जागीर समझ कर,<br>
मुझपर अपनी हवस मिटाई थी,<br>
कर दिया था तुमने नंगा मेरे ज़िस्म को,<br>
और हया ना तुमको आयी थी,<br>
नाम दिया मोहब्बत का तुमने उसे,<br>
फिर क्यों आज तुम मुझको,<br>
गिरी हुई नज़रो से देखने लगे,<br>
तोड़ दिया तुमने मेरे विश्वास को,<br>
और आज तुम मुझे भरोसा देने लगे,<br>
क्यों आज फिर इरादा है क्या तुम्हारा,<br>
मुझे रौंदने का, मेरे ज़िस्म को नोंचने का,<br>
क्यों फिर तुम्हारे चेहरे पर आज मुझे,<br>
एक हैवान नज़र आता हैं,<br>
क्यों दर्द दिया तुमने मुझे,<br>
क्यों मेरे ज़ज़्बात मार दिए,<br>
ना रो सकती हूँ, ना बयाँ कर सकती हूँ,<br>
तुम्हारी हवस को......<br>
लय दिखाऊं मैं ज़माने को,<br>
जो ज़ख्म दिए हैं तुमने मुझे,<br>
मेरे बदन पर,<br>
क्यों आज फिर मैं,<br>
तुम्हारे बिस्तर पर वो ज़िस्म बन जाऊं,<br>
जो तुम्हारे शैतान को मिटा सके रात भर के लिए,<br>
तुम ही बताओ क्या यही प्यार हैं,<br>
मुझसे तुम्हारा,<br>
या सिर्फ नुमाइश हैं तुम्हे,<br>
मेरे ज़िस्म की,<br>
क्यूँ तुम मुझे अपनी जागीर समझते हो,<br>
ना कोई बंधन हैं, ना कोई है रिष्ठतुमसे,<br>
जब तुमने मुझसे हर वादा तोड़ दिया,<br>
तो फिर आज क्यूँ मुझे तुम,<br>
वो वादा निभाने को कहते हो,<br>
क्यों आज तुम मेरे ज़िस्म को,<br>
नंगा करना चाहते हो,<br>
क्यों आज फिर मैं,<br>
उस गलती को दोहराऊं,<br>
जिसमे दर्द मुझे मिला और,<br>
हवस तुम्हारी मिटी थी,<br>
क्यों आज मैं फिर से,<br>
उस आग को भड़काऊं<br>
जिसमे कभी तुम और मैं,<br>
रात भर जले थे........!




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