alka

personal
2014-10-03 12:30:01 (UTC)

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कम्बख्त जिद्दी दिल जिद पर अड़ा है,
नादान जब से तेरे इश्क में पड़ा है ।
तेरे ही ख्यालों में खोया रहता है,
कुछ दिनों से ये गुमसुम बड़ा है ।
इसे समझाऐ कैसे मनाऐ कैसे हम,
जब से इश्क इसके सर पे चढ़ा है ।
कम्बख्त बात मेरी टाल देता है,
जो ये अपनी हदों से आगे बढ़ा है ।
रटता है तेरा नाम सुबह और शाम,
बिछाए पलकें तेरे इन्तेजार में खड़ा है ।
करता है बात तेरी तुझपे फिदा है "सहर"
जब से तेरे मेरे दिल का नाता जुड़ा है ।
मोहम्मद शरीफ़ "सहर"




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