rohit_420

My Real Life
2017-10-31 00:08:20 (UTC)

Acid Victim

चलो माना मैंने,
तुम्हे इश्क़ हैं मुझसे,
तो क्या मैं भी तुम्हे अपना समझ लूँ,
चलो माना मैंने,
तुम लड़ सकते हो दुनिया से मेरी खातिर,
तो क्या मैं भी तुम्हारा साथ निभा लूँ,
मेरी भी ज़िन्दगी हैं कोई,
मेरे भी कोई फैसले हैं,
गर मैंने इंकार कर दिया तुम्हारे इज़हार को,
तो क्यों तुमने मेरे ज़िस्म में तेज़ाब फेंक दिया....!

क्या यही इश्क़ हैं तुम्हारा,
क्या यही तुम्हारी चाहत थी,
क्या गुनाह था मेरा,
जिसकी सज़ा तुमने दी,
क्यों हर बार तुम्हे जवाब हाँ चाहिए,
समझते गर तुम मेरे दिल को,
तो शायद हाँ भी कह देती,
पर तुमने मुझे नहला दिया तेज़ाब से,
बस इंकार करने पर........!

क्या बीत रही हैं मेरे दिल पर,
जो तुमको मैंने अपनी ज़िंदगी का फैसला करने दिया,
क्यों मैंने हामी नहीं भरी तुम्हारे इज़हार पर,
क्यों तुम पर मैंने भरोसा नहीं किया,
शायद यही तुम्हारी मर्दानगी थी,
यही तुम्हारा पौरुष था,
जो मेरे ज़िस्म को बिगाड़ कर,
आज तुम खुश हो रहे हो,
डाला तुमने तेज़ाब मेरे चेहरे पर,
लेकिन मेरे दिल को भी जला दिया........!

चलो अब मैं इज़हार करती हूँ,
हाँ मुझे मोहबब्त हैं तुमसे,
क्या तुम मुझे अपना बनाओगे,
अब क्यों इंकार कर रहे हो,
तुम्हे तो इश्क़ था ना मुझसे,
तुमने ही तो फेंका था तेज़ाब मेरे ज़िस्म पर,
आज मैं तुम्हे अपना रही हूँ,
आज मैं तुम्हे तुम्हारे इश्क़ का जवाब दे रही हूँ,
क्यों मुकर रहे हो तुम अपने वादे से,
निभाओ ना साथ मेरा,
अच्छा छोडो रहने दो,
ये बताओ कहाँ से लाऊं मैं तेज़ाब,
तुम्हे नहलाने के लिए........!




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